परिचय
शिव चालीसा हिंदू धर्म के प्रमुख धार्मिक ग्रंथों में से एक है, जिसमें भगवान शिव के गुणों, महिमा और कृपा के बारे में प्रशंसा की गई है। यह प्राचीन वेदिक श्लोक हमें आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन करता है और आज के आधुनिक समय में भी महत्वपूर्ण रहता है। इस लेख में, हम शिव चालीसा की खास शक्ति को अनलॉक करने के बारे में बात करेंगे और आपको इस प्राचीन ग्रंथ के महत्वपूर्ण लाभों के बारे में जानकारी प्रदान करेंगे।
भगवान शिव: धरोहर और महादेव
शिव चालीसा शिव पुराण में सम्मिलित है और इसमें भगवान शिव को 'महादेव' और 'नीलकंठ' भी कहा जाता है। भगवान शिव हिंदू धरोहर के रूप में सम्मानित होते हैं और वे सृष्टि के उत्थान के लिए सर्वाधिक प्रशस्तियों में से एक हैं। उनके भक्तों के लिए, शिव चालीसा एक मार्गदर्शक और संबल देने वाला साधन है, जो उन्हें आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देता है।
शिव चालीसा का महत्व
शिव चालीसा का पाठ करने से मनुष्य के मन, शरीर और आत्मा को शांति मिलती है। यह प्राचीन श्लोक संकटों से मुक्ति प्रदान करता है और भक्तों को दिव्य शक्ति के साथ संबल देता है। शिव चालीसा के पाठ से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। यह धार्मिक ग्रंथ आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी उपयोगी है और व्यक्ति को आत्मविश्वास देता है कि वह अपने जीवन में किसी भी समस्या का सामना कर सकता है।
शिव चालीसा के लाभ
शिव चालीसा के पाठ के कई धार्मिक और शारीरिक लाभ हैं। यह कष्टों से राहत दिलाने, शारीरिक बीमारियों का निवारण करने, और मन को शांत करने में मदद करता है। इस प्राचीन ग्रंथ के पाठ से व्यक्ति को आत्मिक संबल मिलता है और वह अपने जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है। शिव चालीसा के नियमित पाठ से भक्त के अंतरंग में प्रकाश बढ़ता है और उसका स्वभाव सकारात्मक बनता है। इससे भक्त के जीवन में समृद्धि और सुख-शांति आती है।
आधुनिक समय में शिव चालीसा का महत्व
आधुनिक तकनीकी जगत में भी शिव चालीसा का महत्व अब भी सबके जीवन में मायने रखता है। इस भगवान शिव के प्रति भक्ति और श्रद्धा का अनुभव मनुष्य को सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचा सकता है। शिव चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति का मानसिक और आध्यात्मिक विकास होता है, जिससे उसकी सोच सकारात्मक होती है और उसके जीवन में समृद्धि आती है। शिव चालीसा के पाठ से व्यक्ति के जीवन की समस्याएं कम होती हैं और उसके अंतरंग में शांति बनी रहती है।
आधुनिक जीवन में शिव चालीसा के अनुप्रयोग
आधुनिक जीवन में, हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में कई चुनौतियों का सामना करते हैं। इस भागदौड़ भरे जीवन में, हमारे दिमाग में चिंता और तनाव की बाधा बनी रहती है। इसलिए, शिव चालीसा के नियमित पाठ से हम अपने मन को शांत कर सकते हैं और आत्मिक शक्ति को प्राप्त कर सकते हैं।
समाप्ति
शिव चालीसा एक प्राचीन धार्मिक ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव की प्रशंसा की गई है और उनके भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन किया गया है। यह आज के आधुनिक समय में भी महत्वपूर्ण है और लाखों लोगों को इसके पाठ के लाभ मिले हैं। इस लेख में हमने शिव चालीसा की शक्ति के बारे में जानकारी प्रदान की है और आशा की है कि यह ज्ञान आपके आध्यात्मिक विकास में मददगार साबित होगा।
शिव चालीसा
दोहा:
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
चालीसा:
जय शिव ओंकारा, प्रभु जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ओं हर हर महादेव।।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेव।
बैठीन बागमें बंकेरी, सुणि व्रत कथां महादेव।।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, अर्द्धांगी धारा।
बोलें मृदु प्यारी अम्बिका, भवानी शंकर भारा।।
जय शिव ओंकारा।।
पांचनी त्रिगुणात्मिका, विविध फल चारी।
त्रिगुणा स्वामी की आराधना, विधि फल पारी।।
ओं हर हर महादेव।।
महिमा अमित अनंत को, कहें वेद विदारी।
महादेव शंकर की आरती, जो कोई नर गारी।।
बृहस्पति कृपा करत उर, धारा जो कोई ध्यारी।
धारी ध्यान नित्य शिव जी, मिट जता भव संभारी।।
जय शिव ओंकारा।।
त्रिगुणातीत भवांभुत, गुह्यादिक पारा।
ध्यान धरे जो नर मुदित, दुःख संताप भारा।।
ओं हर हर महादेव।।
पार्वती विधिवत प्रीत, पाती व्रत कराई।
भुजंगराज को मनत, चक्रधर को ढाई।।
जय शिव ओंकारा।।
जाकी सहस्त्र वदन, एकोनिसहस्त्र बान।
अर्ध चन्द्र वदन श्रीश, चंद्रार्धकृत शरीरां।।
कर कलिक धर जनमुकुट, शिर छत्र छवि धरि।
योगिस्वर हरिभूषण, जगवन्धन विद्याधरि।।
जय शिव ओंकारा।।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, जानत अविवेक।
प्रणवकार सबेश्रे श्रीजयदेव अविनेक।।
ओं हर हर महादेव।।
धरा शिवाजी ध्यान धरे, नित्य सुमंगल धाम।
विपिनावासि होकर, भव पारंगत नाम।।
जय शिव ओंकारा।।
धन धन श्रीगुरु गोरख नाथ, जिन्हको त्यागि भारी।
त्रिगुण अतीत भवांभुत, वंदन भाग्यहारी।।
ओं हर हर महादेव।।
त्रिगुणातीत भव सागर, जैकर जेते भारी।
दानव दल परट पर, हरहुँ महासुभकारी।।
जय शिव ओंकारा।।
दारिद्रय दुःख भय हारी, जो नर तव जाप करे।
सोइ अमित जीवन फल पावै,
सोई अमित जान तरे।।
ओं हर हर महादेव।।
विद्वान पुराण कहहुँ, एक भाँति सभी नाम।
संगत निम्ब के फूल जैसे, श्यामल कंचन धाम।।
जय शिव ओंकारा।।
जो जन नित ध्यावे, फल पावे मनोरथ।
ध्यान चकोर अरु शिवराज, कहत अयोध्यादास व्रत धारी।।
ओं हर हर महादेव।।
चालीसा जो पाठ करें, मन वश्य कर दिव्य धाम।
तेज प्रताप महादेव की, करत विक्रम नाम।।
जय शिव ओंकारा।।
महिमा अमित अनंत को, जो कहें वेद विदारी।
महादेव शंकर की आरती, जो कोई नर गारी।।
ओं हर हर महादेव।।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, जानत अविवेक।
प्रणवकार सबेश्रे श्रीजयदेव अविनेक।।
जय शिव ओंकारा।।
धरा शिवाजी ध्यान धरे, नित्य सुमंगल धाम।
विपिनावासि होकर, भव पारंगत नाम।।
जय शिव ओंकारा।।
त्रिगुणातीत भव सागर, जैकर जेते भारी।
दानव दल परट पर, हरहुँ महासुभकारी।।
जय शिव ओंकारा।।
दारिद्रय दुःख भय हारी, जो नर तव जाप करे।
सोइ अमित जीवन फल पावै, सोई अमित जान तरे।।
ओं हर हर महादेव।।
विद्वान पुराण कहहुँ, एक भाँति सभी नाम।
संगत निम्ब के फूल जैसे, श्यामल कंचन धाम।।
जय शिव ओंकारा।।
जो जन नित ध्यावे, फल पावे मनोरथ।
ध्यान चकोर अरु शिवराज, कहत अयोध्यादास व्रत धारी।।
ओं हर हर महादेव।।
चालीसा जो पाठ करें, मन वश्य कर दिव्य धाम।
तेज प्रताप महादेव की, करत विक्रम नाम।।
जय शिव ओंकारा।।
दोहा:
त्रिगुणातीत परम पद, पावैं मुक्ति सरब काल।
अहंकार ममता अद्धारी, जब लगि श्रीगुरुवर नाल॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
सप्तसति में सुनहु रघुपति, सदा खल ब्रह्म भाँति।
त्राहि त्राहि जगदीश्वरि दास वैदेही अनाथ नाथ भाँति॥
दुर्गाप्रिय जननी जगदम्बा, जगजननी त्रिभुवन भवानी।
माता भवानी भव दुखहारिणी, नमामि तुं सुरनर मुनिवन्दितानी॥
सुरनर मुनि पूज्यनि पूजिता, तुम्हरो यश गावें नर नारी।
मोहित मृगनयनि तुहिन जानकी, सबके हृदय भवभयहारिणी॥
जयति जयति जनक सुता तव जयति, जयति जय जननी रामललाजी।
सहसहसहसहसहसहसहसहसहसहसहसहसहसहसहसहसहसहसहसहसह
बहुत नाम नवधा नागरी॥
शतकोटि संतति धर सन्तान की, अर्धधारी सहित भाँति जनक दुलारी।
सुमिरि पवन सुत राम कपीसा, बेगि हरहु सन्तन प्रिय नारी॥
कामकोटि कामधेनु संत सुता, श्रीदशरथ नन्दन सुहारी।
नवनीत छबि तुहुं देहि दृढाई, मोरे राम कहि देवन हारी॥
कवन सुत बनि राज कुवर नारी, दुर्गम काज निबारि अबारी।
तेहि भाँति नरनारी तन साजे, अर्धांगी धरइ श्रुति नारी॥
नवनीत छबि तुम्हरो धारी, मनभावित मनोरथ पुजारी।
काम मोहनि मनु बचन दोहाई, अर्धांगी श्रुति जानत सारी॥
अग्नि सज्जन बैजनाथि की, जयति जयति सिया सहित जनकरानी।
आशा त्रास भव भय हारिणी, रघुपति जीवन भव बंधन कारणी॥
जयति जयति जनक नायकानि, रघुनंदन राजी जगदीशानी।
वेगी श्रीदशरथ बिनय करहु, कृपा करहु नामु जनक निकेतानी॥
वट वृक्ष सज्जन वृक्ष साजी, भरत रूप द्रुम बिज्यानी।
जगमग भारत सुखदायका, श्रीराम भरत बिनु न कोई दायका॥
माता पिता भरत सुता सीता, कुंवर राम दायक बिश्व बिज्यानी।
कोटि चन्द्र नयन भरत भाईया, कृपा करहु सीता दयानी॥
अखिल भुवन ब्रह्मा दिक तिसाई, भजत नर नारी नित्य सहाई।
अष्टसिद्धि नवनीधि के धारी, अरु नवनीत लाल लोचन भाई॥
भव भवनी भाँति सुखदायिनी, बिपिन बिहारिनी जनक नन्दिनी।
विद्या बुद्धि संतान प्रिय करहु, ममता हरहु मान अपनिनी॥
तेहि भाँति राम मन महाजोगी, दुर्गम भव काज निवारी।
दुर्गम काज जगजननि भाँति, तुम्हरो यश गावें नर नारी॥
कवन सुत बनि राज कुवर नारी, दुर्गम काज निबारि अबारी।
तेहि भाँति नरनारी तन साजे, अर्धांगी धरइ श्रुति नारी॥
नवनीत छबि तुम्हरो धारी, मनभावित मनोरथ पुजारी।
काम मोहनि मनु बचन दोहाई, अर्धांगी श्रुति जानत सारी॥
अग्नि सज्जन बैजनाथि की, जयति जयति सिया सहित जनकरानी।
आशा त्रास भव भय हारिणी, रघुपति जीवन भव बंधन कारणी॥
जयति जयति जनक नायकानि, रघुनंदन राजी जगदीशानी।
वेगी श्रीदशरथ बिनय करहु, कृपा करहु नामु जनक निकेतानी॥
वट वृक्ष सज्जन वृक्ष साजी, भरत रूप द्रुम बिज्यानी।
जगमग भारत सुखदायका, श्रीराम भरत बिनु न कोई दायका॥
माता पिता भरत सुता सीता, कुंवर राम दायक बिश्व बिज्यानी।
कोटि चन्द्र नयन भरत भाईया, कृपा करहु सीता दयानी॥
अखिल भुवन ब्रह्मा दिक तिसाई, भजत नर नारी नित्य सहाई।
अष्टसिद्धि नवनीधि के धारी, अरु नवनीत लाल लोचन भाई॥
भव भवनी भाँति सुखदायिनी, बिपिन बिहारिनी जनक नन्दिनी।
विद्या बुद्धि संतान प्रिय करहु, ममता हरहु मान अपनिनी॥
तेहि भाँति राम मन महाजोगी, दुर्गम भव काज निवारी।
दुर्गम काज जगजननि भाँति, तुम्हरो यश गावें नर नारी॥
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